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दुनिया को दिशा देने वाली हो भारतीय कृषि – तोमर कृषि मंत्री

दुनिया को दिशा देने वाली हो भारतीय कृषि – तोमर कृषि मंत्री

कृषि क्षेत्र में तकनीकों का उपयोग बढ़ाते हुए गांवों में ढांचागत विकास की दिशा में सरकार सतत संलग्नत है। सरकार खेती में रोजगार के अवसर बढाते हुए शिक्षत युवाओं को आकर्षित करना चाहती है ताकि युवाओं का ग्रामीण अंचल से पलायन रोका जा सके। खेती में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और पढ़े-लिखे युवा गांवों में ही रहकर कृषि की ओर आकर्षित होंगे। टेक्नालाजी व इंफ्रास्ट्रक्चर का लाभ किसानों को होगा, साथ ही कृषि के क्षेत्र को और सुधारने में कामयाबी मिलेगी। यह विचार कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Union Minister of State for Agriculture and Farmer Welfare Narendra Singh Tomar) ने बीते दिनों व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि “जब देश की आजादी के 100 वर्ष पूरे होंगे, यानी आजादी के अमृत काल तक भारतीय कृषि सारी दुनिया को दिशा देने वाली होनी चाहिए। अमृत काल में हिंदुस्तान की कृषि की विश्व प्रशंसा करे, लोग यहां ज्ञान लेने आएं, ऐसा हमारा गौरव हों, विश्व कल्याण की भूमिका निर्वहन करने में भारत समर्थ हो,” ।

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केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने यह बात भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर - ICAR) द्वारा आयोजित व्याख्यान श्रंखला की समापन कड़ी में कही। “प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से उद्बोधन में भी कृषि क्षेत्र को पुनः महत्व दिया है, जो इस क्षेत्र में तब्दीली लाने की उनकी मंशा प्रदर्शित करता है। पीएम ने आह्वान किया था कि किसानों की आय दोगुनी होनी चाहिए, कृषि में टेक्नालाजी का उपयोग व छोटे किसानों की ताकत बढ़नी चाहिए, हमारी खेती आत्मनिर्भर कृषि में तब्दील होनी चाहिए, पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए, कृषि की योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता होनी चाहिए, अनुसंधान बढ़ना चाहिए, किसानों को महंगी फसलों की ओर जाना चाहिए, उत्पादन व उत्पादकता बढ़ने के साथ ही किसानों को उनकी उपज के वाजिब दाम मिलना चाहिए।

पीएम के इस आह्वान पर राज्य सरकारें, किसान भाई-बहन, वैज्ञानिक पूरी ताकत के साथ जुटे हैं और इसमें आईसीएआर (ICAR - Indian Council of Agricultural Research) की भी प्रमुख भूमिका हो रही है। पिछले दिनों में किसानों में एक अलग प्रकार की प्रतिस्पर्धा रही है कि आमदनी कैसे बढ़ाई जाएं, साथ ही पीएम श्री मोदी के आह्वान के बाद कार्पोरेट क्षेत्र को भी लगा कि कृषि में उनका योगदान बढ़ना चाहिए,” उन्होंने कहा। एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड योजना के दिशानिर्देशों का पूरा सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें श्री तोमर ने कहा कि “खाद्यान्न की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ अन्य देशों को भी उपलब्ध करा रहे हैं। यह यात्रा और बढ़े, इसके लिए भारत सरकार प्रयत्नशील है। खेती व किसानों को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाना है। 

आईसीएआर व कृषि वैज्ञानिकों ने कृषि के विकास में बहुत अच्छा काम किया है। उनकी कोशिश रही है कि नए बीजों का आविष्कार करें, उन्हें खेतों तक पहुंचाएं, उत्पादकता बढ़े, नई तकनीक विकसित की जाएं और उन्हें किसानों तक पहुंचाया जाएं। जलवायु अनुकूल बीजों की किस्में, फोर्टिफाइड किस्में जारी करना इसमें शामिल हैं। सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिकों ने कम समय में अच्छा काम किया, जिसका लाभ देश को मिल रहा है। आईसीएआर बहुत ही महत्वपूर्ण संस्थान हैं, जिसकी भुजाएं देशभर में फैली हुई हैं। कृषि की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संस्थान लगा हुआ है।


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किसानों की माली हालत सुधारना हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इसके लिए 6,865 करोड़ रुपये के खर्च से दस हजार नए कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाना शुरू किया गया है। इनमें से लगभग तीन हजार एफपीओ बन भी चुके हैं। इनके माध्यम से छोटे-छोटे किसान एकजुट होंगे, जिससे खेती का रकबा बढ़ेगा और वे मिलकर तकनीक का उपयोग कर सकेंगे, अच्छे बीज थोक में कम दाम पर खरीदकर इनका उपयोग कर सकेंगे, वे आधुनिक खेती की ओर अग्रसर होंगे, जिससे उनकी ताकत बढ़ेगी और छोटे किसान आत्मनिर्भर बन सकेंगे। 

श्री तोमर ने कहा कि कृषि क्षेत्र में निजी निवेश के लिए सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये के इंफ्रास्ट्रक्चर फंड का प्रावधान किया है। साथ ही अन्य संबद्ध क्षेत्रों को मिलाकर डेढ़ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का फंड तय किया गया है। एग्री इंफ्रा फंड (Agri Infra Fund) के अंतर्गत 14 हजार करोड़ रु. के प्रोजेक्ट आ चुके हैं, जिनमें से 10 हजार करोड़ रु. के स्वीकृत भी हो गए हैं। सिंचाई के साधनों में भी बढ़ोत्तरी हो रही है, जल सीमित है इसलिए सूक्ष्म सिंचाई पर फोकस है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का लाभ आम किसानों तक पहुंचाने के लिए सूक्ष्म सिंचाई कोष 5 हजार करोड़ रु. से बढ़ाकर 10 हजार करोड़ रु. किया गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि छोटे किसानों के लिए वरदान साबित हुई है। इस स्कीम में अभी तक लगभग साढ़े 11 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 2 लाख करोड़ रु. से ज्यादा राशि जमा कराई जा चुकी हैं। 

Source : PIB (Press Information Bureau) Government of India आजादी का अमृत महोत्सव में केंद्रीय कृषि मंत्री के उद्बोधन के साथ संपन्न हुई आईसीएआर की 75 व्याख्यानों की श्रंखला का पूरा सरकारी दस्तावेज पढ़ने के लिए, यहां क्लिक करें प्रारंभ में आईसीएआर के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक ने स्वागत भाषण दिया। संचालन उप महानिदेशक डा. आर.सी. अग्रवाल ने किया।

चीड़ की पत्तियों से बनाई जाएगी कंप्रेस्ड गैस क्या है, जाने क्या है राज्य सरकार की योजना

चीड़ की पत्तियों से बनाई जाएगी कंप्रेस्ड गैस क्या है, जाने क्या है राज्य सरकार की योजना

हम सभी जानते हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में चीड़ के पेड़ काफी ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं और आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हिमालय के आस पास पाए जाने वाले चिल्के इन पेड़ों की पत्तियां नॉनबायोडिग्रेडेबल होती है. इसके अलावा यह पत्तियां अपनी प्रकृति में बहुत ज्यादा ज्वलनशील होती है जो बहुत बार जंगल में आग का कारण भी बन जाती है और पूरे के पूरे जंगल नष्ट कर देती हैं. सरकार ने  इस समस्या का हल निकालने के साथ-साथ चीड़ के पेड़ से किसानों को कुछ लाभ करवाने के बारे में भी योजना बनाई है. पहाड़ी इलाकों में उगने वाले इस पेड़ की पत्तियों से सरकार कंप्रेस्ड बायोगैस बनाने के बारे में सोच रही है.

पहाड़ों में रहने वाले ग्रामीण लोगों की स्थिति में होगा सुधार

गर्मियों के मौसम में चीड़ की पत्तियां गर्मी के कारण आग पकड़ लेती है जो जंगल की आग का कारण बनती है.  अब राज्य सरकार द्वारा इन पत्तियों से कंप्रेस्ड बायोगैस तैयार करने के बारे में तेजी से कदम उठाए जा रहे हैं. यहां की मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि इसके लिए सबसे पहले चीड़ की पत्तियों को सीबीजी के उत्पादन के टेस्ट के लिए एचडी ग्रीन रिसर्च डेवलपमेंट सेंटर बेंगलुरु में भेजा जाएगा और उसके बाद इस पर आगे का निर्णय लिया जाएगा. अगर यह योजना सफल हो जाती है तो पहाड़ी इलाकों में रहने वाले आसपास के ग्रामीण लोगों के लिए यह बहुत बड़ा आर्थिक सुधार का कदम साबित होने वाला है. ये भी पढ़े: भारत के वनों के प्रकार और वनों से मिलने वाले उत्पाद

हिमाचल में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में आती हैं जंगल में आग लगने की खबर

अगर आंकड़ों की बात की जाए तो हिमाचल में लगभग सालाना 1200  से 2500  खबरें जंगल में आग लगने की सामने आ ही जाती हैं. इसे पेड़ों को तो नुकसान होता ही है साथ ही आसपास रहने वाले इलाके के लोगों को भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.  इन्हीं घटनाओं को देखते हुए सरकार ने चीड़ की पत्तियों से कंप्लेंट बायोगैस बनाने का फैसला लिया है.

ऑयल इंडिया लिमिटेड के साथ किया गया है समझौता

राज्य सरकार ने कंप्रेस्ड बायोगैस बनाने के लिए ऑयल इंडिया लिमिटेड के साथ समझौता करने के लिए अपना ज्ञापन प्रस्तुत कर दिया है.माना जा रहा है कि इसके लिए जल्द ही पायलट परियोजना की शुरुआत कर दी जाएगी.

ऊर्जा संकट की परेशानी दूर होने की है संभावना

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की मानें तो उनके अनुसार वनों से निकलने वाले अपशिष्ट का अगर सही तरह से प्रयोग किया जाए तो यह राज्य में ऊर्जा संकट की परेशानी को दूर कर सकता है. इससे ना सिर्फ जंगल में आग लगने के मामले कम होंगे बल्कि आसपास के क्षेत्र में लोगों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा और साथ ही ऊर्जा संकट की परेशानी में भी अच्छा-खासा इजाफा होने की संभावना है.
बिना प्रौद्योगिकी के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था मुमकिन नहीं - राज्य मंत्री कैलाश चौधरी

बिना प्रौद्योगिकी के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था मुमकिन नहीं - राज्य मंत्री कैलाश चौधरी

अनुसूचित जाती आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने कहा है, कि बदलते युग में टेक्नोलॉजी के माध्यम से भारत 2047 तक विकसित देश बनने में सक्षम होगा। साथ ही, अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ विश्व के लिए उत्पादन भी करेगा। कृषि में प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजी) के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा है, कि यदि भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त करना है, तो कृषि क्षेत्र में सटीक खेती (प्रिसिजन फार्मिंग), कृत्रिम मेधा (एआई) और कृषि-ड्रोन आदि जैसी नवीन तकनीकों को बड़े स्तर पर अपनाना होगा। उन्होंने ईटी एज की मदद से भारत की प्रमुख कृषि-रसायन कंपनी धानुका समूह द्वारा नई दिल्ली में आयोजित "कृषि में भविष्य की नई तकनीकें: भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक परिदृश्य परिवर्तक" पर एक दिन के सेमिनार में यह कहा है।

अनाज उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भरता हेतु मिलेगा सहयोग

स्वयं के खेती के अनुभव को याद करते हुए उन्होंने कहा, "ट्रैक्टर तकनीक की शुरुआत से पहले किसानों के पास बारिश के 4-5 दिनों के भीतर खेतों को जोतने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। बैल जोतते थे, इसलिए गति धीमी होने की वजह से आधे खेत अनुपयोगी रह जाते थे। ट्रैक्टर प्रौद्योगिकी ने किसानों को कुछ दिनों में खेतों के बड़े भू-भाग को जोतने में सक्षम बनाया और इससे हमें अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भरता हांसिल करने में मदद मिली। इसी तरह हमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के निकट भविष्य के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए खेती में कृत्रिम मेधा (एआई), ड्रोन, सटीक खेती, ब्लॉकचेन जैसी नवीन तकनीकों का फायदा उठाने की जरुरत है।"

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फसलीय पैदावार में वृद्धि करने के लिए तकनीक बेहद जरूरी - कैलाश चौधरी

कैलाश चौधरी ने संगोष्ठी में मौजूद वैज्ञानिकों को नवीन कृषि प्रौद्योगिकियों के साथ किसानों को सशक्त बनाकर कृषि उत्पादन में पर्याप्त इजाफा करने के लिए भारत के वर्षा-सिंचित जनपदों में 40 प्रतिशत कृषि योग्य जमीन में तकनीक का इस्तेमाल कर उत्पादन बढ़ाने का भी आह्वान किया। भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री ने कहा, "देश में अधिकांश कृषि भूमि की क्षमता समाप्त हो गई है। केवल बारिश पर निर्भर क्षेत्र बचा है, जिसकी क्षमता का दोहन करने की जरुरत है।"

भारत के पूर्व राष्ट्रपति महामहिम राम नाथ कोविंद ने संगोष्ठी को भेजा संदेश

संगोष्ठी के लिए भेजे गए अपने संदेश में भारत के पूर्व राष्ट्रपति महामहिम राम नाथ कोविंद ने कहा, “भारतीय कृषि विज्ञान आधारित प्रौद्योगिकियों को अपनाने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य को आकार दे रही है। स्पष्ट रूप से गतिशील कृषि वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं, किसानों के प्रतिनिधियों और उद्योग जगत के दिग्गजों की मौजूदगी में यह चर्चा एक सदाबहार क्रांति के जरिए से कृषि के भविष्य में क्रांति लाने का मार्ग प्रशस्त करेगी।”

कृषि में प्रौद्योगिकी किसानों को सशक्त और मजबूत बना सकती है

अपने जमीनी अनुभव को साझा करते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने कहा है, कि किसानों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए प्रौद्योगिकी के विवेकपूर्ण इस्तेमाल की वकालत की है। उन्होंने कहा,“जब मैंने एक स्कूल में छात्रों से बातचीत की, तो उनमें से तकरीबन सभी वैज्ञानिक, इंजीनियर और डॉक्टर बनना चाहते थे। परंतु, उनमें से कोई भी किसान बनना नहीं चाहता था। ऐसा इसलिए है, क्योंकि देश ने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता तो हांसिल कर ली है। लेकिन, किसान आज भी गरीब है। यही वजह है, कि हमें इस बात पर विचार करने की काफी जरुरत है, कि किस तरह कृषि में प्रौद्योगिकी प्रत्यक्ष तौर पर किसानों को मजबूत और शक्तिशाली बना सकती है। साथ ही, उनके जीवन को अच्छा बनाकर उन्हें सम्मानित जीवन प्रदान कर सकती है।

डॉ दीपक पेंटल ने कृषि-रसायन को लेकर क्या कहा है

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर डॉ दीपक पेंटल द्वारा जीएम फसलों की सशक्त वकालत करते हुए कहा, "अमेरिका ने बहुत पहले जीएम फसलों को पेश करके कृषि उत्पादन में 35% की वृद्धि की है, जबकि यूरोप सिर्फ 6-7% तक ही सीमित रहा है। वैसे भी यूरोप में जनसंख्या नहीं बढ़ रही है, इसलिए उनके पास विकल्प है। लेकिन क्या हमारे पास विकल्प है? इसलिए हमें यह तय करने की आवश्यकता है, कि हम विभाजन के किस तरफ रहना चाहते हैं। डॉ. पेंटल ने कृषि-रसायनों के इस्तेमाल का समर्थन करते हुए कहा है, कि यदि हम चाहते हैं कि फसलों को कम हानि पहुँचे, तो उच्च गुणवत्ता वाले कृषि-रसायन जरूरी हैं।
केंद्र सरकार ने अन्न भंडारण योजना को मंजूरी दी, हर एक ब्लॉक में बनेगा गोदाम

केंद्र सरकार ने अन्न भंडारण योजना को मंजूरी दी, हर एक ब्लॉक में बनेगा गोदाम

केंद्र सरकार की तरफ से भारत के अंदर बढ़ती अन्न की बर्बादी को ध्यान में रखते हुए। अन्न भंडारण योजना को स्वीकृति दी है। इस योजना के अंतर्गत देश के प्रत्येक ब्लॉक में गोदाम निर्मित किए जाएंगे। भारत में अन्न की बर्बादी ना हो इसको लेके केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। सरकार की ओर से अन्न भंडारण योजना को स्वीकृति दे दी गई है। जिसके अंतर्गत हर एक ब्लॉक में 2 हजार टन के गोदाम स्थापित किए जाएंगे। इस व्यवस्था को शुरू करने के लिए त्रिस्तरीय प्रबंध किए जाएंगे। इस योजना का उद्देश्य अन्न की बर्बादी को रोकना है। बतादें, कि फिलहाल भारत में अन्न भंडारण की कुल क्षमता 47 प्रतिशत है। परंतु, केंद्र सरकार की इस योजना से अन्न भंडारण में तीव्रता आएगी। कैबिनेट की बैठक खत्म हो जाने के उपरांत केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का कहना है, कि सहकारिता मंत्री के नेतृत्व में समिति बनाई जाएगी। योजना की शुरुआत 700 टन अन्न भंडारण के साथ होगी। इस योजना की शुरूआत होने पर भारत में खाद्य सुरक्षा को बल मिलेगा। इस योजना को जारी होने पर अन्न भंडारण क्षमता में इजाफा होगा। वर्तमान में भारत के अंतर्गत अनाज भंडारण की क्षमता 1450 लाख टन है। जो कि फिलहाल बढ़कर 2150 लाख टन हो जाएगी।

हर एक ब्लॉक में गोदाम स्थापित किए जाऐंगे

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस लक्ष्य को हांसिल करने के लिए 5 साल का वक्त लग जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार पांच साल में 1 लाख करोड़ रुपये का खर्चा करने वाली है। योजना के अंतर्गत भारत के हर एक ब्लॉक में गोदाम स्थापित किए जाऐंगे। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के मुताबिक, यह योजना सहकारिता क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा अन्न भंडारण कार्यक्रम है। इस योजना से भारत में रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे। इसके अतिरिक्त फसल की बर्बादी भी रुकेगी। यह भी पढ़ें: भंडारण की समस्या से मिलेगी निजात, जल्द ही 12 राज्यों में बनेंगे आधुनिक स्टील गोदाम

खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी

केंद्र सरकार के अनुसार, सहकारिता क्षेत्र में गोदाम के अभाव के चलते अन्न की बर्बादी ज्यादा हो रही है। अगर ब्लॉक स्तर पर गोदाम निर्मित होंगे तो अन्न का भंडारण होने के साथ-साथ ट्रांसपोर्टिंग पर आने वाली लागत भी कम आएगी। योजना के अंतर्गत खाद्य सुरक्षा को मजबूती मिलेगी। फिलहाल, भारत में प्रत्येक वर्ष 3100 लाख टन खाद्यान्न की पैदावार होती है। लेकिन, सरकार के पास केवल उत्पादन के 47 प्रतिशत भाग को भंडारण करने की ही व्यवस्था है। जो कि इस योजना के आने के उपरांत ठीक हो जाएगी।
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री ने कृषि भवन में ''पीएम किसान चैटबॉट'' (किसान ई-मित्र) का अनावरण किया

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री ने कृषि भवन में ''पीएम किसान चैटबॉट'' (किसान ई-मित्र) का अनावरण किया

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री द्वारा कृषि भवन में "PM Kisan AI Chatbot (Kisan e-Mitra)" को लॉन्च करते हुए कहा है, कि किसानों को होने वाली असुविधाओं का निराकरण करने के लिए यह बेहद कारगर सिद्ध होगा। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने आज AI Chatbot लॉन्च किया, जो प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का भाग है। AI Chatbot का उद्घाटन पीएम-किसान योजना को ज्यादा प्रभावी बनाने एवं किसानों को उनके सवालों का त्वरित, स्पष्ट एवं सही उत्तर देने में एक महत्वपूर्ण कदम है। बतादें, कि इस दौरान राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा है, कि कृषि क्षेत्र को तकनीक से जोड़ने का यह महत्वपूर्ण कदम कृषकों के जीवन में व्यापक बदलाव लाने वाला है। कृषि राज्य मंत्री ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अच्छे शासन के अंतर्गत तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का आह्वान किया है। दरअसल, आज की गई कार्रवाई इसमें कामयाब होगी। ड्रोन के जरिए से खेती करने की तकनीक का प्रभाव है, जिससे युवा कृषि की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यही वजह है कि भारत के कृषि क्षेत्र में नए-नए उद्यम चालू हो रहे हैं।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री ने क्या कहा है

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री ने राज्य के अधिकारियों से कहा है, कि वह किसानों को AI चैटबॉट का इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षण दें। बतादें, कि समुचित निगरानी रखें एवं प्रारंभिक दौर में आने वाली किल्लतों का तुरंत प्रभाव से समाधान करें। उन्होंने इस कवायद को मौसम, फसल नुकसान, मृदा की स्थिति, बैंक भुगतान इत्यादि से जोड़ने पर विशेष जोर दिया।

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AI Chatbot शीघ्र 22 भाषाओं में उपलब्ध होगा

AI Chatbot को पीएम-किसान शिकायत प्रबंधन प्रणाली में शुरू करने का उद्देश्य किसानों को एक सुगम और सरल प्लेटफार्म देना है। AI Chatbot अपने विकास के प्रथम चरण में किसानों को उनके आवेदन की स्थिति, भुगतान विवरण, अपात्रता की स्थिति एवं अन्य योजना-संबंधी अपडेट प्राप्त करने में मदद करेगा। पीएम-किसान लाभार्थियों की भाषाई एवं क्षेत्रीय विविधता को पूरा करते हुए AI Chatbot को पीएम-किसान मोबाइल एप में भाषिनी के साथ एकीकृत किया गया है। दरअसल, वर्तमान में चैटबॉट छह भाषाओं में मौजूद है, जिनमें अंग्रेजी, हिंदी, बंगाली, उड़िया एवं तमिल शम्मिलित हैं। शीघ्र ही यह देश की 22 भाषाओं में उपलब्ध होगा।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने झारखंड में तीन दिवसीय पूसा कृषि विज्ञान मेले का उद्घाटन किया

केंद्रीय कृषि मंत्री ने झारखंड में तीन दिवसीय पूसा कृषि विज्ञान मेले का उद्घाटन किया

केंद्रीय कृषि मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने रविवार 10 मार्च को झारखंड के सिमडेगा जनपद में तीन दिवसीय पूसा कृषि विज्ञान मेले का उद्घाटन किया। सिमडेगा जनपद के अल्बर्ट एक्का स्टेडियम में आयोजित इस मेले का प्रमुख विषय “कृषि उद्यमिता– समृद्ध किसान” है।

भारत को दलहन-तिलहन में आत्मनिर्भर बनाने का निश्चय

मुख्य अतिथि श्री अर्जुन मुंडा ने कहा, कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के यशस्वी नेतृत्व में किसानों के कल्याण के लिए पूसा संस्थान और अन्य अनुसंधान संस्थाओं द्वारा लगातार बेहतरीन प्रयास किया रहा है। 

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उन्होंने किसानों से नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके वैज्ञानिक नवाचारों का अधिकतम लाभ उठाने का आह्वान किया। श्री मुंडा ने दलहन-तिलहन के क्षेत्र में भी देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए बड़ी संख्या में मौजूद किसानों को संकल्प दिलाया।

प्रदर्शनी से फसलों का रोग से संरक्षण हो सकेगा 

केंद्रीय मंत्री ने कहा, कि बीज में रोग ना लगे, इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा निरंतर कार्य किया जा रहा है। धान की फसल में जल की कम खपत हो, इसके लिए कैसे बीज तैयार किए जाएं, इस संबंध में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान सहित विभिन्न संस्थानों के माध्यम से शोध व अध्ययन किया जा रहा है और नई फसल किस्में तैयार भी की गई हैं। इस प्रदर्शनी के जरिए से किसानों को फसलों में रोग से संरक्षण के बारे में भी जानकारी मिलेगी।

किसानों का डेटाबेस तैयार किया जा रहा है 

अर्जुन मुंडा ने बताया कि सिमडेगा जिले को आदर्श जिला बनाना है। कृषि के आधुनिकीकरण के मकसद से केंद्रीय स्तर पर केंद्र के माध्यम से किसानों का डेटाबेस बनाया जा रहा है, जिससे वह सीधे कृषि मंत्रालय से जुड़कर नई तकनीकों का लाभ ले सकें और उनके गांव-खेत की जानकारी डिजिटल रूप से जुटाकर सरकार उनके कल्याण के लिए ज्यादा मजबूती से कार्य कर सकें।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, नई दिल्ली द्वारा सिमडेगा में आयोजित मेले के दौरान देशभर से विभिन्न कृषि संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय व कृषि विज्ञान केंद्र नवीन तकनीकियों का प्रदर्शन कर रहे हैं। 

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उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए मूल्य संवर्धन और फसल विविधता पर चर्चा की जाएगी। मेले में कृषक उत्पादक संगठन व महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा भी स्टॉल लगाये गए है। पूसा संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा संगोष्ठी भी की जा रही है, जिससे किसानों को नवीन तकनीकों की जानकारी प्राप्त हो सकेगी।

पूसा कृषि विज्ञान मेले में कौन-कौन उपस्थित रहे 

कृषि विज्ञान मेले के इस अवसर पर श्रीमती विमला प्रधान पूर्व मंत्री झारखंड, श्री निर्मल कुमार बेसरा पूर्व विधायक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, दिल्ली के निदेशक डा. अशोक कुमार सिंह, डा. एस.सी. दुबे कुलपति बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, डा. सुजय रक्षित, निदेशक, भारतीय कृषि जैव प्रोद्यौगिकी अनुसंधान संस्थान, रांची, डा. विशाल नाथ समेत विभिन्न कृषि अनुसंधान संस्थानों के वैज्ञानिक एवं प्रतिनिधि भी मौजूद थे।